नरसिंहगढ़ रियासत के वीर सपूत कुँवर चैनसिंह जी ने मात्र २३ वर्ष की उम्र में सन १८५७ की क्रांति से ३३ वर्ष पहले ही भारत की स्वाधीनता के लिये शंखनाद कर दिया था।
सीहोर स्थित समाधी
नरसिंहगढ़ स्टेट केजो उनके साथ पधारे थे वे सभी भी वीरता से लड़ते-लड़ते उनके साथ शहीद हो गये। (सिर्फ नरसिंहगढ़ स्टेट के ठिकाने व जागीरदार इस युद्ध में उनके साथ थे अगर आस पास के सभी राज्यों के ठिकानेदार व स्टेट भी साथ हो जाती तो परिणाम कुछ और होता।)
कुँवर चैनसिंह सिंह जी की पत्नी कुवरानी जी (रुपकँवर जी राजावत ठिकाना मुवालिया ) तक जब यह समाचार पंहुचा तो उन्होंने उसी दिन से अन्न को त्याग दिया एवं उस दिन के बाद से केवल पेड़-पोधो के पत्तो पर जीवन व्यतीत किया।
सीहोर स्थित समाधी |
कुवरानी सा राजावत जी का मंदिर |
कुंवरानी राजावत जी ने कुँवर चैनसिंह सिंह जी की याद में परशुराम सागर के पास एक मंदिर भी बनवाया जिसे हम कुंवरानी जी के मंदिर के नाम से जानते है। इस मंदिर की खासियत यह है की इन प्रतिमाओ में भगवान का स्वरुप मुछों में है अर्थात कुंवरानी जी भगवान की इन मुछों वाली प्रतिमाओ में कुँवर चैनसिंह सिंह जी का प्रतिबिम्ब देखकर उसी रूप में उनकी आराधना करती थी। इस युद्ध की तैयारी कुँवर चैन सिंह जी ने पहले ही कर ली थी उन्होंने अपने सभी विश्वासपात्र ठिकानेदार ,जागीरदार और साथियो को अपने प्राणो की आहुति देने को तैयार रहने को कहा जो वीर है वे ही साथ चलें जिनके वंशज नहीं थे उन्हें बिच में ही वापस लौटने को कहा जिसके कारण बहुत से ठिकानेदार बिच से ही लोट आये, क्युकी कुंवर साब को अच्छी तरह आभास था की हम सब वीरगति को प्राप्त होने वाले है
ब्रिटिश काल में अंग्रेजो छावनी सीहोर थी जो की आज मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 35 km पश्चिम में भोपाल-इंदौर रोड पर स्थित है। अग्रेजो की इस छावनी पर भरपूर सैनिक और गोला बारूद व सशत्र थे। वहां पर पहुंचने पर अग्रेजो द्वारा युद्ध की चेतावनी और कार्यवाही करने की चुनौती को स्वीकार करते हुए कुंवर सा ने मंगल जमादार से कहा कि जाओ तुम्हारे साहब लोगों से बोल दो हम उनकी कोई बात नहीं मानेंगे, वो हमें आदेश देने वाले कौन होते हैं हम अपने राज्य
समाधी स्थल छारबाग नरसिंहगढ़
के स्वतंत्र राजा है और हम युद्ध के लिये तैयार हैं । जमादार द्वारा कु. चैन सिंह से यह विनती करने पर कि मैं अदना सा अंग्रेजी हुकूमत का मुलाजिम आपकी बात साहब लोगों के सामने नहीं बोल
ब्रिटिश काल में अंग्रेजो छावनी सीहोर थी जो की आज मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 35 km पश्चिम में भोपाल-इंदौर रोड पर स्थित है। अग्रेजो की इस छावनी पर भरपूर सैनिक और गोला बारूद व सशत्र थे। वहां पर पहुंचने पर अग्रेजो द्वारा युद्ध की चेतावनी और कार्यवाही करने की चुनौती को स्वीकार करते हुए कुंवर सा ने मंगल जमादार से कहा कि जाओ तुम्हारे साहब लोगों से बोल दो हम उनकी कोई बात नहीं मानेंगे, वो हमें आदेश देने वाले कौन होते हैं हम अपने राज्यके स्वतंत्र राजा है और हम युद्ध के लिये तैयार हैं । जमादार द्वारा कु. चैन सिंह से यह विनती करने पर कि मैं अदना सा अंग्रेजी हुकूमत का मुलाजिम आपकी बात साहब लोगों के सामने नहीं बोल
समाधी स्थल छारबाग नरसिंहगढ़
पाऊंगा, आप अपने किसी विश्वास पात्र को भेजकर अपने निर्णय से अंग्रेज साहबों को अवगत करा दें । इस पर कु.चैन सिंह द्वारा अपने विश्वास पात्र लाला भागीरथ को भेज अपने निर्णय से मेंडाक और जानसन को अवगत करा देने के पश्चात अंग्रेजी फौज द्वार कैम्प पर आक्रमण कर दिया गया । प्रतिउत्तर में कु.चैन सिंह और उनके साथ सभी ठिकाने के जागीरदार व राजपूत सरदार व साथी हिम्मत खाँ और बहादुर खाँ सहित विभिन्न जाति और धर्म के लोगों ने अंग्रेजी फौज का वीरतापूर्वक सामना कर अपने प्राणों की आहूति दे कर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहला सशस्त्र विद्रोह कर दिया।
यह थे इस सशस्त्र विद्रोह के शहीद
पाऊंगा, आप अपने किसी विश्वास पात्र को भेजकर अपने निर्णय से अंग्रेज साहबों को अवगत करा दें । इस पर कु.चैन सिंह द्वारा अपने विश्वास पात्र लाला भागीरथ को भेज अपने निर्णय से मेंडाक और जानसन को अवगत करा देने के पश्चात अंग्रेजी फौज द्वार कैम्प पर आक्रमण कर दिया गया । प्रतिउत्तर में कु.चैन सिंह और उनके साथ सभी ठिकाने के जागीरदार व राजपूत सरदार व साथी हिम्मत खाँ और बहादुर खाँ सहित विभिन्न जाति और धर्म के लोगों ने अंग्रेजी फौज का वीरतापूर्वक सामना कर अपने प्राणों की आहूति दे कर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहला सशस्त्र विद्रोह कर दिया।
यह थे इस सशस्त्र विद्रोह के शहीद
- वीर सा.कु.चैन सिंह जी
- खुमान सिंह जी (दीवान)
- शिवनाथ सिंह जी राजावत (ठि.मुआलिया)
- अखे सिंहचंद्रावत जी (ठि.कड़ियाचन्द्रावत)
- हिम्मत खाँ ,बहादुर खाँ
- रतन सिंह (राव जी)
- गोपाल सिंह (राव जी)
- पठार उजीर खाँ,
- बख्तावर सिंह
- गुसाई चिमनगिरि
- जमादार पैडियो
- मोहन सिंह राठौड़ ,
- रूगनाथ सिंह,
- राजावत तरवर सिंह
- प्रताप सिंह गौड़ ,
- बाबा सुखराम दास
- बदन सिंह नायक,
- लक्ष्मण सिंह,
- बखतो नाई
- ईश्वर सिंह,
- मौकम सिंह सगतावत ,
- फौजदार खलील खाँ
- हमीर सिंह
- जमादार सुभान,
- श्याम सिंह,
- बैरो रूस्तम
- बखतावर सिंह सगतावत (नापनेरा)
- चोपदार देवो ,
- उमेद सिंह सोलंकी,
- मायाराम बनिया
- प्यार सिंह सोलंकी ,
- केशरी सिंह
- कौक सिंह,
- मोती सिंह
- गज सिंह सींदल ,
- दईया गुमान सिंह ...इनके सहित 40-50 के लगभग वीर राजपूत योद्धा शहीद हुए थे इनके अलावा उनके सेवक भी थे।
- गागोर राघौगढ़ राजा धारू जी खीची के उत्तराधिकारी गोपाल सिंह एवं जालम सिंह सहित 40 के लगभग घायल हुऐ थे।
---------भारत सरकार ने भी माना शहीद---------
भारत सरकार ने नरसिंहगढ़ एवं सीहोर दोनों स्थानों पर कुँवर चैन सिंह जी के स्मारक बनवाये है !
भारत शासन द्वारा कुँवर चैन सिंह जी को ८ अगस्त १९८७ को शहीदो की माटी संग्रह कार्यक्रम में सम्मलित किया था !
तीनो वीरो की माटी को दिल्ली शहीद स्मारक ले जाकर राष्ट्रीय शहीद घोषित किया गया !
कुँवर चैन सिंहजी से जुड़े इतिहास को कक्षा १०वी के पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है !
(पश्चिम बंगाल के स्कूलो में आज भी पदाया जाता है)
" गार्ड ऑफ़ ऑनर "
मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 2015 से सीहोर स्थित कुंवर चैन सिंह की छतरी पर गार्ड ऑफ ऑनर प्रारम्भ किया है।
प्रत्येक वर्षब २४ जुलाई सरकार की और से कुँवर साब चैन सिंह जी को गार्ड ऑफ़ ऑनर की सलामी सीहोर व नरसिंहगढ़ में उनकी समाधी पर दी जाती है।
। । देव रूप में होती है पूजा । ।
अमर शहीद कुँवर साब चैन सिंह जी को लोग नरसिंहगढ़ व आस -पास के ग्रामीण क्षेत्र में देव तुल्य मान कर उनकी पूजा अर्चना करते है व शुभ कार्यो जैसे विवाह , जन्म आदि में उनके लोक गीत गाते है उनकी गादी लगाई जाती है व समाधि पर पूजा आरती होती है।
"शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशाँ होगा"
(पश्चिम बंगाल के स्कूलो में आज भी पदाया जाता है)
" गार्ड ऑफ़ ऑनर "
अमर शहीद कुँवर साब चैन सिंह जी को लोग नरसिंहगढ़ व आस -पास के ग्रामीण क्षेत्र में देव तुल्य मान कर उनकी पूजा अर्चना करते है व शुभ कार्यो जैसे विवाह , जन्म आदि में उनके लोक गीत गाते है उनकी गादी लगाई जाती है व समाधि पर पूजा आरती होती है।
वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशाँ होगा"
...इस लाइन को सिर्फ पढने से मेला नही लगेगा हम सभी को २४ जुलाई के दिन उनकी समाधी पर जाकर उनकी वीरता को याद करना चाहिये,यही सबसे बड़ी श्रधांजलि होगी।
जरा सोंचिये आज के समय में इतनी वीरता कोन दिखा सकता है? जो मिलेट्री के बेस केम्प पर ही जाकर हमला बोले दे... जेसा की वीर योद्धा कुँवर चैनसिंह जी ने अग्रेजो के बेस केम्प सीहोर छावनी पर जाकर किया था।
तो आइये प्रति वर्ष २४ जुलाई को उनको नमन करते है छारबाग नरसिंहगढ़ व सीहोर स्थित उनकी समाधी पर ज्यादा से ज्यादा संख्या में पहुचे और यह संदेश ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचाये… Source - www.narsinghgarh.com https://www.karnisena.com
नरसिंहगढ़ खबर